भानगढ़ की आत्मकथा एक ऐतिहासिक मूल्यांकन by सूरजभान भारद्वाज

INFORMATION
- AUTHOR : सूरजभान भारद्वाज
- HB ISBN : 978-93-6627-387-7
- Year : 2025
- Extent : 184
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लोगों का मानना है कि अंधेरा होने के बाद हानगढ़ दूत प्रेतों का आवास बन जाता है और यह शहर एक तांत्रिक के अभिशाप के कारण उजड़ गया था। इस अवधारणा को दूरदर्शन की दुनिया ने और पुख्ता कर दिया है। दरअसल इस संकल्पना ने हानगढ़ के इतिहास को गौण बना दिया है और दूत प्रेतों की कहानियां इस उजड़े शहर की जीवन रेखा बन गई हैं। इस पुस्तक में हानगढ़ के इतिहास का संक्षिप्त विवरण है। हानगढ़ 17वीं सदी में एक फलता-फूलता वाणिज्यिक शहर होता था, जो 18वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में राजनीतिक कारणों से उजाड़ दिया गया था। 20वीं सदी के प्रारंभ में हानगढ़ की उजड़ी हुई विरासत को लोगों से बचाने के लिए दूत प्रेतों की कहानियों का प्रचलन शुरू हो गया। इन कहानियों में दो विरोधी धाराओं का विवरण मिलता है – हानगढ़ का विनाश नाथपंथियों के अभिशाप के कारण हुआ है जबकि वैष्णव धर्म सुख-शांति व समृद्धि का प्रतीक है।
The Author
सूरजभान भारद्वाज ने तीन दशक से अधिक दिल्ली विश्वविद्यालय से संबंधित मोतीलाल नेहरू महाविद्यालय, नई दिल्ली में अध्यापन कार्य किया है। वह महाविद्यालय से कार्यवाहक प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने सन् 1992 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। विशेष रूप से उनकी रुचि मध्यकालीन भारतीय लेखन में रही है। उनका शोध कार्य का क्षेत्र मध्यकालीन राजस्थान रहा है। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में ‘ब्वदजमेजंजपवदे’ ‘दक। बबवउवकंजपवदेरू डमूंज ‘दक डमवे पद डनहींस प्दकपं 2016 द्धय जंजम ‘दक च्मेंदज वबपमजल पद डमकपमअंस छवतजी प्दकपंरू मैंले वद ींदहपदह ब्वदजवनते व डमूंज 2019 द्धए बेहद प्रसिद्ध है।
इन पुस्तकों के अलावा उन्होंने और पुस्तकें राजस्थान के इतिहास से संबंधित सह लेखक के रूप में प्रकाशित की हैं। इनके अतिरिक्त एक दर्जन से अधिक शोध-पत्र लिखे हैं जो राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।